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सफ़र चुदाई का 2

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सफ़र में मस्ती 2
कविता बोली- मैं खाना लगाती हूँ..
खाना खाकर टीवी देखेंगे। हमने
खाना खाकर जब टीवी देखने बैठे..
तो करीब साढ़े दस बज गए थे।
हमने एक हिंदी मूवी चैनल लगाया और
देखने लगे।
अभी करीब दस मिनट ही हुए होंगे
कि कविता रोने लगी.. मैं उसके पास
जाकर बैठ गया.. और उसका हाथ
लेकर सहलाने लगा- क्या हुआ..?
कविता मेरे कंधे पर सर रख कर बोलने
लगी- मैं यहाँ बहुत अकेली हो जाती
हूँ.. किसी से भी दोस्ती की बात
करो.. तो वो सीधे सेक्स की बात
करने लगता है। आज कल लोगों को
क्या हो गया है.. एक लेडी को क्या
चाहिए.. उन्हें इससे कोई मतलब नहीं
होता है.. बस उनको तो सेक्स से
मतलब होता है। अब तक मैंने जितनों से
भी बात की है.. छूटते ही यही सवाल
होता है तुम्हारे पति तो बाहर हैं..
फिर अपनी आग कैसे शांत करती हो।
मैं तसल्ली से उसको सुन रहा था, वो
अपनी ही धुन में आगे बोली- लोगों
को यह नहीं मालूम होता कि एक
औरत को सेक्स के साथ-साथ प्यार
की भी ज़रूरत होती है, मैंने कहा- तुम
लोगों की छोड़ो.. मैंने तुम् से
कोई बदतमीज़ी तो नहीं की न..
‘अरे यार साहिल.. तुम मुझे बहुत अलग
लगे.. और तुमने मुझसे कोई गलत बात
भी नहीं की.. मुझे तुम्हारे जैसे एक
दोस्त की ही ज़रूरत है.. न कि किसी
सेक्स पार्टनर की..’
मैंने बोला- देखो कविता मैं भी औरों
से अलग नहीं हूँ.. मुझे भी सेक्स पसंद
है.. पर मैं सामने वाले को देख कर बात
करता हूँ। तुम्हें एक दोस्त की ज़रूरत
थी.. जो मैंने समझा और अब मैं तुम्हारे
साथ हूँ।
अब वो कुछ शांत हुई.. तो मैंने उससे
पूछा- मैं तुम्हें चुम्बन कर सकता हूँ?
उसने मुस्कुरा कर मूक सहमति सी दी।
मैंने पहले उसके माथे को चुम्मा दिया
फिर उसके एक गाल पर.. फिर दूसरे
गाल पर चुम्मा दिया।
फिर मैं जैसे ही उसके होंठों की तरफ
बढ़ रहा था.. तो कविता ने आखें बंद
कर लीं और मैं बड़े प्यार से कविता के
कोमल और मुलायम होंठों को चूमने..
फिर चूसने लगा।
फिर मैंने जोर से कविता को गले लगा
लिया.. वो भी मुझे अपनी बाँहों में
जकड़ रही थी। अब कविता भी
होंठों का जवाब होंठों से दे रही
थी। हम दोनों एक-दूसरे की जीभ से
खेल रहे थे.. चूस रहे थे। फिर मैंने धीरे से
अपना एक हाथ कविता की चूची पर
रखा और सहलाने लगा।
फिर मैं उसे चूची को दबाने लगा। अब
मेरा एक हाथ कविता की पीठ पर
और एक हाथ से बारी-बारी से
दोनों चूची दबा रहा था।
कुछ समय तक ऐसा करने के बाद मैं अलग
हुआ.. तो कविता ने पूछा- बेडरूम में
चलें?
हम दोनों कमरे में गए और मैंने कविता
के बिस्तर पर लेटने से पहले.. उसकी
नाईट ड्रेस उतार दी।
अब कविता सिर्फ पैन्टी और ब्रा में
थी, वो बहुत ही कातिल हसीना लग
रही थी।
मैंने उसे बिस्तर पर लेटाया और अपने
कपड़े उतारे। अब मैं सिर्फ निक्कर में
था और कविता ब्रा और पैन्टी में
थी।
मैं उसके ऊपर चढ़ कर.. फिर से कविता
के होंठों को चूसने और चूमने लगा और
मेरा एक हाथ कविता के मम्मों को
दबा रहे थे और दूसरे हाथ से मैं कविता
की ब्रा को खोलने की तैयारी कर
रहा था। कुछ ही समय में मैंने कविता
के चूचियों को ब्रा से आजाद कर
दिया।
अब मैं कविता के मम्मों को चूस रहा
था कविता बड़े मजे से अपनी चूचियों
को चुसवाने का मजा ले रही थी।
चूचियों को चूसते हुए मैंने एक हाथ
कविता के चूत की तरफ अग्रसर
किया। मैं अब कविता की चूत को
भी सहला रहा था और कविता की
चूचियों को भी चूसता रहता।
इस बीच कविता कभी मेरा लौड़ा
पकड़ने की कोशिश करती और कभी
मुझे जोर से गले लगा लेती।
मैंने कविता की चूत सहलाते हुए उसकी
पैन्टी और अपना निक्कर उतार
दिया।
जैसे ही मैंने अपना हाथ दुबारा चूत के
पास रखा.. तो कुछ गीला सा महसूस
हुआ।
मैंने कविता की चूची को चूसते हुए..
अपनी एक ऊँगली कविता की चूत में
पेल दी। ऊँगली डालते ही कविता
की मुँह से ‘आ..अहा.. आह..’ की
आवाज आई जैसे-जैसे कविता गरम हो
रही थी.. कुछ न कुछ बोल रही थी-
साहिल.. चूस डालो इन चूचियों
को… मसल डालो इन्हें.. और जोर से
दबाओ मेरी चूचियों को..
मैं भी वैसा ही कर रहा था.. जैसे
कविता कह रही थी।
मैंने कविता की चूत में तीन ऊँगलियाँ
डाल दीं और अन्दर-बाहर करने लगा
और दूसरे हाथ से कविता की चूत को
जोर-जोर से मसल और चूस रहा था,
कविता के मुँह से सिसकारियाँ
निकल रही थीं- ओह.. साहिल.. मेरा
पूरा बदन तुम्हारा है.. मेरे पूरे बदन का
दर्द निकाल दो..
इन्हीं सिसकारियों के बीच में
कविता जोर से सांस लेती और उसके
मुँह से ‘आह… लव यू साहिल.. मजा आ
रहा है… उइ.. उमह..’ जैसा कुछ निकल
रहा था।
कविता ऐसा करने के कुछ समय उपरांत
शांत हो गई और मैंने अपनी ऊँगली
निकाली तो देखा मेरी ऊँगलियों पर
कविता का कामरस लगा हुआ था,
मैंने उसे साफ कपड़े की सहायता से
साफ़ किया।
मैंने पूछा- तुम्हें लौड़ा चूसना है?
कविता ने कहा- लौड़ा चूत में डालने
के लिया होता है.. न की मुँह में…
मैं उसकी न को समझ गया।
फिर मैंने कविता की दोनों टांगों
को फैलाया और अपने आप को उन
दोनों टांगों की बीच मैं सैट करता
हुआ बैठ गया और मैं अपना लौड़ा
पकड़ कर कविता की चूत पर रगड़ने
लगा।
चूत पर सुपारे की रगड़ पा कर कविता
फिर मचल उठी और बोलने लगी-
साहिल प्लीज.. अपने इस लंड को
मेरी चूत में जल्दी से डाल दो.. मुझे ऐसे
मत तड़पाओ.. आह्ह… प्लीज डालो
न.. ऊम्म्म.. मत सताओ.. अन्दर डालो
न…
कुछ समय बाद मैंने अपना लौड़ा
कविता के चूत के मुख पर रखा और
हल्के से धक्के के साथ मेरे आधा लौड़ा
कविता के चूत में प्रवेश कर गया।
मुझे महसूस हुआ कि कविता की चूत मेरे
ऊँगली करने से गीली हो गई थी
इसीलिए आसानी से मेरा आधा
लौड़ा अन्दर चला गया।
उसे लौड़ा घुसते ही मजा आ गया..
अब वो सिसकारियाँ ले रही थी-
आह्ह… पेलो.. इस लवड़े को मेरी चूत
में.. यह बहुत दिन से प्यासी है.. आज
इसकी प्यास बुझा दो साहिल..
ऊम्म्म.. अह्ह्हाआआआ…
मैंने थोड़ा और जोर लगा के धक्का
लगाया तो मेरा पूरा लौड़ा कविता
की चूत में समा गया। अब कविता
चिल्लाने लगी.. साहिल मेरी जान..
चोदो मुझे.. उम्म्म.. आहा.. मम…
मैं कविता की चूत में अपना लौड़ा
अन्दर-बाहर करने लगा.. साथ में मैंने
कविता की चूचियों को पकड़ लिया
और दबाने लगा।
कविता चिल्लाने लगी- आह्ह..
साहिल और जोर से दबाओ मेरी
चूचियों को.. और जोर से चोदो मुझे
साहिल.. मेरी जान.. और जोर से
चोद हरामी साहिल.. अह… उअम्म्म्म
जा.. न..चोदो मुझे..
उसकी चुदास भरी आवाजें सुन कर मेरे
अन्दर भी जोश भर रहा था। मैंने भी
कविता को चोदने की रफ़्तार बढ़ा
दी, अब मेरा लौड़ा कविता की चूत
में तेजी से अन्दर-बाहर हो रहा था।
जैसे मैंने कविता को चोदने की रफ़्तार
बढ़ाई.. वैसे ही मैंने कविता की
चूचियों को दबाने की रफ़्तार भी
बढ़ा दी।
इससे कविता को मज़ा आने लगा और
कविता और जोर से चिल्लाने लगी-
हरामी साहिल.. कुते जोर से दबा
मेरी चूची को रस निकाल दे.. इन
चूचियों का.. अह… उम… मज़ा आ रहा
है साहिल प्लीज और जोर से चोदो
मुझे.. चोदो मुझे साहिल..
मैंने कविता को चोदने की रफ़्तार
बढ़ा दी। करीब 15-20 मिनट तक हम
एक-दूसरे का नाम लेते हुए धकापेल
चुदाई करते रहे। मैं कविता को हुमक कर
चोद रहा था.. फिर मैंने कविता से
बोला- कविता मेरा निकलने वाला
है।
कविता ने बोला- मेरा तो दो बार
निकल चुका है.. तुम मेरी चूत में ही
अपना कामरस डाल दो.. मैं सुबह आई-
पिल ले लूँगी।
मैंने कुछ देर तक और चोदने के बाद
अपना कामरस कविता की चूत में ही
छोड़ दिया और मैं कविता के ऊपर
गिर कर उसके मदभरे होठों को चूसने
लगा.. कविता भी प्यार से मेरे होंठों
को चूस रही थी।
फिर हम अलग हुए और कविता ने कपड़े
से मेरा लौड़ा साफ़ किया। मैंने भी
उसी कपड़े से उसके चूत साफ़ की।
मैंने पूछा- पानी मिलेगा?
वो बिस्तर से उतरी और नंगी ही
पानी लेने चली गई। मैं जाते वक़्त
कविता के सेक्सी चूतड़ों को हिलते
हुए देख रहा था। बड़े ही मादक लग रहे
थे।
कविता के चूतड़ों को देख कर मेरे
लवड़ा फिर आकार लेने लगा।
हमने पानी पिया और बिस्तर पर एक
साथ लेट गए। कविता मेरे बाजुओं पर
सर रख कर लेट गई।
हम बातें करने लगे.. कविता मेरे लवड़े से
खेलने लगी और मैं कभी कविता के
मम्मे दबाता.. कभी उसकी चूत में
ऊँगली करता। दस मिनट बाद मेरा
लौड़ा अपने पूरे आकार में आ गया था।
इस बार मैंने कविता पहले घोड़ी बना
कर चोदा। कविता पहले की तरह ही
चिल्ला रही थी और थोड़ी देर में
सीधा करके कविता की दोनों टाँगें
फैला कर चोदा।
इसके बाद हम सो गए। उस रात को
हमने दो बार ही सम्भोग किया।
सुबह कविता ने मुझे बड़े प्यार से
बालों में हाथ फरते हुए उठाया। अभी
कविता मैक्सी में थी। मैंने उठते ही
कविता के होंठों का रसपान किया।
फिर कविता ने कहा- मैं नहाने जा
रही हूँ।
मैंने बोला- अकेले-अकेले.. मैं भी आता
हूँ।
मैं भी कविता के पीछे बाथरूम में घुस
गया।
फिर हमने एक बार और फुव्वारे के नीचे
चुदाई की और कविता की गाड़ी
लाने से पहले एक बार और चुदाई का
आनन्द लिया।
इस घटना के बाद मैं और कविता हफ्ते
दो हफ्ते में एक बार ज़रूर मिलते थे।
अब कविता को मेरी आदत हो गई
थी.. उसकी चूत का सूनापन मेरे लवड़े
ने भर दिया था। हम रोज ही चुदाई
की बातें करने लगे। उसको मैंने अपने
जीवन में एक चुदासी मगर सच्ची
प्रेमिका का स्थान दिया है।


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