जैसे ही प्रीति ने मेरे लिंग को अपनी
योनि के होंठों में फसाया मैंने जोर से
धक्का दे दिया और लिंग-मुंड को
उसकी योनि के अंदर डाल दिया।
प्रीति के मुँह से जोर की एक चीख
निकली तथा सिर हिलाते हुए
सिस्कारियाँ भरते हुए तड़पने लगी।
मैं कुछ देर के लिए वहीँ रुक गया और
उसके होंठों को चूमने एवं चूसने लगा।
जैसे ही प्रीति की तड़प एवं
सिस्कारियाँ बंद हुई में अपने लिंग का
दबाव बढ़ाया और धीरे धीरे वह लिंग
उसकी योनि-रस से गीली योनि में
घुसने लगा।
अगले पांच मिनट में मैंने अपना साढ़े
छह इंच लम्बा लिंग प्रीति की तंग
योनि में जड़ तक डाल ही दिया।
तब मैंने प्रीति के उरोजों को चूसते हुए
पूछा- प्रीति, तुम इतना चिल्लाई
क्यों? क्या पहली बार सम्भोग कर
रही हो? क्या बहुत दर्द हुआ जो
तुम्हारी आँखों से आंसू निकल आये?
मेरे प्रश्नों के उत्तर में प्रीति बोली-
नहीं पहली बार नहीं कर रही, मैंने तो
पति के साथ कई बार सम्भोग किया
है। लेकिन आपका लिंग मेरे पति के
लिंग से अधिक मोटा है और मेरी
योनि में बिल्कुल फस कर घुसा है।
क्योंकि मेरी योनि इतने मोटे लिंग
की अभयस्त नहीं है इस किये मुझे बहत
दर्द हुआ था लेकिन अब मैं बिल्कुल
ठीक हूँ।
प्रीति की बात सुनते ही मैंने
आहिस्ता आहिस्ता हिलना शुरू
किया और अपने लिंग को उसकी
योनि के अंदर बाहर करने लगा।
दस मिनट तक आहिस्ता आहिस्ता
करते रहने का बाद मैंने महसूस लिया
कि प्रीति भी मेरा साथ दे रही थी
और जब मैं लिंग को अंदर धकेलता तब
वह अपने कूहले उठा कर उसका स्वागत
करती।
तब मैं तेज़ हिलने लगा और अपने लिंग
को प्रीति की योनि की जड़ तक
डालने लगा तो उसने भी अपने चूतड़
उछालना तेज़ कर दिया और हलकी
सिस्कारियाँ भी लेने लगी।
अगले दस मिनट तक हम दोनों ऐसे ही
हिलते रहे तभी प्रीति ने मुझे कस कर
अपनी बाहों में जकड़ लिया, टाँगें
भींच ली तथा अपने बदन को अकड़ाते
हुए एक लम्बी सिसकारी ली और
अपना योनि-रस छोड़ दिया।
उसके द्वारा योनि-रस छोड़ने के
कारण उसकी योनि में फिसलन हो
गई और मेरा फंस कर चल रहा लिंग अब
बहुत ही तेज़ी से अन्दर बाहर होने
लगा था।
अगले पांच मिनट तक इस तेज़ी हिलने
के कारण हम दोनों को पसीना आने
लगा था और हमारी साँसें भी फूलने
लगी थी।
तभी मुझे महसूस हुआ कि प्रीति की
योनि के अन्दर हलचल और खिंचावट
होने लगी थी जिससे मेरे लिंग को
कुछ अधिक रगड़ लगने लगी थी।
उस रगड़ का परिणाम यह हुआ कि
मेरी उत्तेजना बढ़ गई और मेरा लिंग
भी उसकी योनि के अंदर फूलने लगा
था।
मैं समझ गया कि अंत आने वाला है, तब
मैंने प्रीति से पूछा- प्रीति, मेरा
वीर्य-रस छूटने वाला है। जल्दी
बोलो लिंग को बाहर निकाल कर
स्खलित करूँ या फिर तुम्हारी योनि
के अंदर ही स्खलित कर दूँ?
मेरी बात सुनते ही प्रीति ने मुझे एक
बार फिर जकड़ लिया और अपने
नाख़ून मेरी पीठ में गाड़ दिए तथा
एक लम्बी सी सिसकारी लेते हुए
कहा- इस समय मुझे जो आनन्द मिल
रहा है, मैं नहीं चाहती कि वह अधूरा
रह जाए तथा मैं तुम्हारे वीर्य-रस की
गर्मी को अपने योनि के अंदर महसूस
करना चाहती हूँ। इसलिए तुम जल्दी
से अपना सब कुछ मेरी योनि के अंदर
ही स्खलित कर दो।
इतना कहते ही प्रीति का पूरा शरीर
अकड़ गया और उसने अपने बाहों एवं
टांगों से मुझे जकड़ लिया तथा मेरे
चूतड़ों को दबा कर मेरे लिंग को
अपनी योनि की जड़ कर पहुँचा
दिया।
तभी उधर उसकी योनि ने अपना
लावा उगला और और इधर मेरे लिंग ने
अपनी पिचकारी चलाई।
देखते ही देखते प्रीति की योनि एक
तालाब में बदल गई और मेरे और उसके
रस के मिश्रण से लबालब भर गई थी
क्योंकि योनि के अंदर उस रस में डूबे
मेरे लिंग को उसकी गर्मी महसूस हो
रही थी।
हम दोनों पसीने से तर तथा हाँफते हुए,
मेरे लिंग को प्रीति की योनि में
फंसाए हुए, एक दूसरे से लिपटे हुए,
बिस्तर पर निढाल होकर लेट गए और
हमें पता ही नहीं चला कब हमें नींद आ
गई।
सुबह छह बजे हमारी नींद खुली जब
प्रीति ने अपनी टांगें चौड़ी करके मेरे
लिंग को अपनी योनि की कैद से
आजाद कराया और उठ कर बाथरूम के
जाकर कपड़े धोने लगी।
मैं उठ कर बाथरूम में गया और पीछे से
जाकर उसके उरोजों को मसलने लगा
तथा अपने लिंग को उसकी जांघों के
बीच में फंसा कर सामने की ओर
पेशाब करने लगा।
प्रीति मेरी इस क्रिया से बहुत
रोमांचित हो उठी थी इसलिए उसने
अपने हाथों को अपनी जाँघों के बीच
में डाल कर बहुत ही प्यार से मेरे लिंग
को पकड़ लिया और मेरे पेशाब की
धार को पॉट के अंदर डालने की
कोशिश करने लगी।
मैंने जैसे ही पेशाब बंद किया, प्रीति
मुड़ी ओर मुझको होंठों से लेकर नाभि
तक चूमते हुए नीचे बैठ गई और मेरे लिंग
को मुँह में लेकर चूसने लगी।
मैंने जब उसे मना किया तब वह बोली-
यह तो अब मेरा हो गया है और इसे
प्यार करने का मुझे पूरा हक है।
उसकी बात सुन कर मैंने उसे फर्श पर
लिटाते हुए बोला- अगर मेरी जांघों
के बीच वाला तुम्हारा हो गया है
तो तुम्हारी जाँघों के बीच वाली
भी तो मेरी हो गई है।
उसके लेटते ही मैंने अपने लिंग को
प्रीति के मुँह के हवाले कर दिया और
उसकी योनि को चाटने एवं चूसने
लगा।
मेरे द्वारा करी बीस मिनट की
चुसाई में प्रीति ने दो बार अपना
योनि-रस स्खलित करके मुझे
पिलाया और मेरे लिंग को बहुत ही
अच्छी तरह से चूस कर पूर्व-रस की
अनेक बूंदों को खींच कर पिया।
बीस मिनट के बाद मैं फर्श पर लेट
गया और प्रीति मेरे ऊपर चढ़ गई और
मेरे लिंग को अपनी योनि में डाल कर
एक मंझे हुए घुड़सवार की तरह सवारी
करने लगी।
पन्द्रह मिनट तक प्रीति बहुत ही
तेज़ी से मेरे लिंग को अपनी योनि के
अंदर बाहर करती रही लेकिन जब
उसकी योनि के अंदर खिंचावट की
लहरें दौड़ने लगी थी तब उसने मुझे ऊपर
आने के लिए कह दिया।
मैंने उसके साथ तुरंत स्थान बदल कर
सम्भोग क्रिया को ज़ारी रखा और
अगले दस मिनट के तीव्र संसर्ग के बाद
हम दोनों ने एक साथ ही प्रीति की
योनि में अपना रस स्खलित कर
दिया।
पांच मिनट वैसे ही लेटे रहने के बाद जब
हम उठे तो देखा कि प्रीति की
योनि में से हम दोनों के मिश्रित रस
का झरना बहने लगा था।
उस झरने को प्रीति बहुत ही हैरानी
से देखते हुए बोली- अमन जी, मुझे
लगता है कि आपके अंडकोष में
सामान्य से दस गुना अधिक रस बनाने
की क्षमता है। सम्भोग के बाद मैंने
आज तक कभी भी अपनी योनि में से
इतना रस निकलते हुए नहीं देखा। रात
को भी आपने मेरी योनि को इतना
भर दिया था कि जब सुबह मैंने लिंग
को बाहर निकला था तब भी इसी
तरह रस की नदी बह निकली थी।
मैंने झट से कहा- यह सब तुम्हारे कारण
ही हुआ होगा। मैं तो दोनों समय
सिर्फ एक एक बार ही स्खलित हुआ
हूँ लेकिन तुमने तो हर बार अपने रस का
फव्वारा कई बार छोड़ा था।
मेरी बात पर प्रीति हंस दी और आगे
बढ़ कर मेरे लिंग को चूम लिया और
उसे तथा अपनी योनि को अच्छी तरह
से धो कर साफ़ दिया।
फिर वह कपड़े धोने बैठ गई और मैं उसके
पास बैठ कर बातें करते हुए उसके
उरोजों से खेलता रहा।
कहानी जारी रहेगी।
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