बीस साल का एक लड़का.. जिसकी
हसरतें क्या होती हैं.. ये आप और हम
बेहतर जानते हैं। फिर मैंने तो अर्जुन
मेघा का जो पागल कर देने वाला
नज़ारा देखा था.. वो अब भी मेरी
आँखों में झूलता था.. पढ़ाई में अब मन
कहाँ लगता था मेरा..
अब तो बस कॉलेज में अपनी महिला
प्रोफ़ेसर को निहारना.. क्लास में
पुस्तक की जगह महिलाओं के आगे-
पीछे के उभारों को छूने की
परिकल्पना से मन भटकने लगा था।
अर्जुन के साथ रूममेट बनकर रहने की
वजह से मुझमें एक बदलाव सा आने
लगा था। मेरी रूचि हमउम्र लड़कियों
में न होकर मेरा महिलाओं के प्रति
आकर्षण बढ़ रहा था। ये होना भी
जायज़ था.. क्योंकि मेरे अरमानों
को हवा देने वाली भी अर्जुन की
गर्लफ्रेंड.. शादीशुदा मेघा ही थी..
जो काम की देवी की तरह मेरी
आँखों में झूल रही थी।
पढ़ाई में अपने आपको पिछड़ता देख
मैंने एक फैसला किया.. कि अब मैं
अर्जुन का साथ छोड़कर किसी
दूसरी जगह नया अशियाना
बनाऊँगा। मैंने यह फैसला भी किया
कि अब मैं अकेला ही किसी कमरे में
रहूंगा।
झीलों की नगरी भोपाल में एक अलग
कमरे को तलाशता रहा और मेरे हाथ
सफलता लगी.. राजधानी के एक
पॉश कही जाने वाली अरेरा
कॉलोनी में.. उधर मुझे एक कमरा
किराए पर मिल गया।
वो आलीशान घर था.. घर के सामने
पार्क और बालकनी वाला मेरा
कमरा.. मेरा मन खुश हो गया।
मकान मालिक सख्त मिज़ाज़.. एक
अधिकारी थे.. इसलिए उनके घर के
सदस्यों का अंदाज़ा भी मैं नहीं लगा
पाया.. बस रहने लगा।
मैं रोज सुबह पढ़ाई के लिए 6 बजे
उठता.. बालकनी में बैठ कर पढ़ने की
कोशिश करता.. पर कोशिश अधूरी
ही रह जाती.. क्योंकि बालकनी से
दिखने वाले पार्क में सुबह-सुबह कई
महिलाएं..पुरुष.. लड़कियां तफरीह के
लिए आती थीं.. जिन्हें मैं निहारता
रहता था।
ऐसा चलते यही कुछ 15 दिन बीत गए
होंगे.. उन पार्क में आने वाली एक
महिला मुझे बेहद पसंद आ गई थी। वो
करीब 30-32 साल की थी.. जॉगिंग
सूट में उनके उभार हर कदम के साथ-
साथ मचलते हुए हिला करते थे। भरे हुए
गुलाबी गाल.. अपने आकार से
ज्यादा उठे हुए पुठ्ठे.. आँखों के सामने
आते सिल्की बाल और वो बार-बार
बालों को मुँह से हटाने वाली अदा..
गज़ब थी वो..
अब अक्सर मैं उसे पाने के सपने देखा
करता था.. मैं भी रोज ठीक उनके आने
के समय पर पार्क में तफरीह करने
लगा.. पर आपने शर्मीले स्वभाव के
कारण कभी न बात कर सका.. न ही
खुल कर उसे निहार सका..
बस रोजाना उनकी एक झलक से मेरा
मन खुश हो जाता था।
एक बार जब मैं पास की किराना
दुकान पर गया.. तो दुकानदार ने
मुझसे पूछा- किराए से रहते हो..??
मैंने कहा- हाँ.. अभी कुछ दिनों पहले
ही आया हूँ यहाँ पर..
उन्होंने फिर पूछा- किसके यहाँ रह रहे
हो?
मैंने कहा- पार्क के सामने वाले
मुखर्जी जी के घर पर एक कमरा
लिया है।
वो चिढ़कर बोला- क्या.. उनके घर
पर.. खूसट है वो… कभी उन्होंने तुम्हें
अपने घर के अन्दर घुसने भी नहीं दिया
होगा.. पैसे का ज्यादा ही घमंड है
साले को.. उनके घरवाले भी घुसे रहते
हैं.. ना बातचीत ना कहीं आना-
जाना.. कभी दूसरा कमरा चाहिए
हो तो बताना.. हम भी स्टूडेंट को
किराए से कमरे देते हैं।
मैंने कहा- ठीक है.. बताऊँगा..
दुकानदार की इस बात ने मेरे मन में एक
सवाल पैदा कर दिया कि आखिर
इतने बड़े घर में कौन-कौन रहता
होगा?? इस सवाल के जबाव की
तलाश में अक्सर ताक-झांक करता
रहता।
इस तरह एक माह बीत गया और मैं
दोपहर को जानबूझ कर किराया देने
पहुँचा, मैंने घंटी बजाई.. कुछ देर बाद
एक आवाज आई- कौन है?
मैंने कहा- किराया देना है।
उधर से जबाब मिला- रुको आती हूँ..
जैसे ही दरवाजा खुला.. मैंने देखा कि
ये तो वही है.. पार्क वाली.. मेरी
चाहत..
फिर बोली- शाम को दे देते.. फालतू
में डिस्टर्ब कर दिया..
मैंने कहा- माफ़ कीजिए..
और दरवाजा बंद हो गया।
अभी मेरी लालसा अधूरी ही थी..
मैंने दुकानदार से बात की और मुझे
पता चला कि उनके घर में 5 सदस्य हैं।
अंकल-आंटी.. बेटा-बहू और उनका
पोता.. मकान मालिक का बेटा
नोएडा में था और पोता आर्मी
होस्टल में.. बहू भी पड़ी-लिखी थी..
पर अंकल ने शादी के बाद उनकी जॉब
छुड़वा दी।
अंकल की एक और खामी पता चली।
अंकल सख्त, चिड़चिड़े होने के साथ-
साथ कंजूस भी थे।
एक बार अंकल अपने बगीचे में काम कर
रहे थे।
मैंने कहा- अंकल आप परेशान न हों.. मैं
गांव का रहने वाला हूँ.. गार्डनिंग
का काम में कर दूँगा.. ये मेरा शौक
भी है।
वो बोले- ठीक है..
फिर उन्होंने पूछा- और क्या-क्या
कर लेते हो?
मैंने कहा- इलेक्ट्रानिक सामान की
रिपेयरिंग से लेकर फिटिंग तक कर
लेता हूँ..
उन्होंने बड़े मीठे स्वर में कहा-
अच्छा..
मैंने कहा- घर का कोई भी काम हो..
तो याद करना आप..
वो सिर हिला कर चल दिए।
कुछ दिनों बाद उनके घर में कूलर ख़राब
हो गया। अंकल ने मुझे बुलाया कहा-
कूलर सुधार सकते हो?
मैंने कहा- जी..
उन्होंने मुझे घर के अन्दर बुला लिया।
मैंने कूलर चैक किया और महज़ कुछ ही
देर में सुधार दिया।
अंकल बहुत खुश हुए.. होते भी क्यों न..
कंजूस के पैसे जो बचा दिए थे मैंने..
थोड़े दिनों बाद फिर मेरे कमरे को
किसी ने खटखटाया.. देखा तो वही
अंकल की बहू.. मेरे सपनों की रानी..
मेरे सामने खड़ी थी।
मैंने कहा- जी कहिए..
उन्होंने बोला- पंखा ख़राब है..
पापा ने कहा है.. जरा देख लो..
उनका बड़ा ही रूखा सा जवाब
मिला.. फिर मैं घर के अन्दर गया।
मैंने कहा- अंकल नहीं है क्या?
फिर तेज़ स्वर में बोली- नहीं..
मैं अपने काम में लग गया.. रूख ही
सही.. पर पहली बार मेरा संवाद उनसे
हो रहा था।
‘पंखा ऊपर है.. कुछ ऊँचा रखने को
दीजिए..’
‘स्टूल चलेगा..?’
मैंने कहा- जी..
मैंने ऊपर चढ़ने की कोशिश की और
जानबूझ कर गिर गया।
वो बोली- देख कर काम नहीं कर
सकते क्या?
मैं- जी माफ़ कीजिए..
उन्होंने कहा- चलो.. मैं पकड़ती हूँ..
तुम चढ़ो..
मैं फिर स्टूल पर चढ़ा.. और पँखा
खोलते समय एक निगाह नीचे मार
लेता.. उनके उभार.. गोरे-गोरे.. एकदम
तने हुए.. बड़े-बड़े.. और मम्मों के बीच
की दरार भी साथ में दिख रही थी।
मैंने अपना काम और धीरे कर दिया
जिससे कि ज्यादा देर तक मजे ले सकूँ।
कुछ देर बाद मैंने उनसे पेंचकस माँगा..
उन्होंने दिया।
मैंने मौके का फायदा उठाकर उनके
हाथ को छू लिया.. पर उसे कुछ समझ
नहीं आया।
पंख उतार कर मैं उसे देखता रहा था…
कभी वो झुकती तो उनकी आगे की
दरार दिखी.. तो कभी पीछे के भरे
हुए पुट्ठे मेरी नज़रों को हटने न देते..
साड़ी के बीच में उनकी गोरी और
कमसिन कमर मुझे अपनी ओर
खींचती.. किसी तरह मैं अपने आपको
काबू में करने का प्रयास कर रहा था।
शायद उन्होंने मेरी इन हरकतों को
देखा नहीं था.. वो अपने काम में मस्त
और मैं आपने काम में मस्त था।
मेरे लण्ड का आकार बड़ा होता जा
रहा था। मैंने पंखे को रख कर उनसे
पानी माँगा।
उन्होंने मुझे पानी लाकर दिया।
मैंने फिर उनकी नाजुक सुन्दर
ऊँगलियों को स्पर्श करता हुआ
गिलास को हाथ में ले लिया। उनकी
इस बार भी कोई प्रतिक्रिया नहीं
हुई।
अब मेरी कुछ हिम्मत बढ़ी.. इस बार
मैंने उसे भाभी कह कर आवाज़ लगाई..
तो वो आई..
मैंने कहा- पकड़ लीजिए.. मुझे चढ़ना
है।
उन्होंने स्टूल को पकड़ लिया.. मैंने
पँखा लगा दिया…
फिर नीचे उतरते वक्त मैं हल्का सा
लड़खड़ाया और एक धक्का उसे लग
गया। भाभी के पसीने में भीगे उभार
मेरे हाथ से टकरा गए।
भाभी की निगाहें एकदम तन सी गईं..
मैं घबरा गया.. पर कुछ बिना कुछ
बोले मैं उधर से चलता बना।
अब मैं रोज किसी न किसी बहाने से
उनके नजदीक जाकर, उनसे बात करने
की कोशिश करता.. उसे छूने की
कोशिश करता..
ऐसा करीब एक माह तक चलता रहा।
अब मैं रोज भाभी को नमस्ते करता..
वो भी मुस्कुरा कर सर हिला देतीं।
सुबह जॉगिंग के समय उनसे गुड-मॉनिंग
विश करता..
अब एक अंतर मुझे समझ में आया कि
जो कभी अपने घर से बाहर नहीं
निकलती थीं.. वो मुझे अब अकसर
नजर आने लगी थीं। मेरी बातों का
जबाब भी तुनक मिज़ाज़ में ही सही..
पर अब भाभी जबाव देने लगी थीं।
एक और ख़ास बात जो मैंने नोट की
वो ये कि भाभी हर दूसरे दिन काम
बतातीं और मैं उन्हें ताड़ने.. छूने की
लालसा में झट से उनका काम करने
को राजी हो जाता..
कभी पानी की टंकी साफ़ करने के
दौरान भाभी की कमर को सहला
देता.. कभी गैस की टंकी फिट करने
के बहाने उनके बड़े-बड़े चूतड़ों को दबा
देता।
एक दिन मैंने मस्ती में भाभी से कहा-
भाभी आप इतनी पड़ी-लिखी हैं..
तो जॉब क्यों नहीं करतीं?
वो कुछ उदास हो कर बोलीं- बस यूँ
ही..
मैंने कहा- भाभी आपका नाम क्या
है?
उन्होंने कहा- अनु..
मैंने कहा- आप जैसी हैं वैसा ही
आपका नाम भी है।
वो मुस्कुरा दीं।
कहानी अभी जारी है। आपके
विचारों का स्वागत है।
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