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कुँआरी चुद

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कुँआरी चुद 1
अब मैं अपनी नौकरानी
के साथ सम्भोग के बारे में बता रहा हूँ।
यह बात आज से लगभग 4 साल पहले
की है.. मैं अपनी
मम्मी के साथ रहता था। मेरा भाई
पढ़ाई के लिए इन्दौर गया हुआ था। हमारा घर
काफी बड़ा है.. 4 बेडरूम.. एक
हॉल है। मम्मी की
तबियत ठीक नहीं
रहती है.. इसलिए मैंने
मम्मी से कहा- एक
नौकरानी रख लीजिए..
थोड़ी मदद हो जाएगी।
थोड़ी ना-नुकुर के बाद
मम्मी मान गईं लेकिन उन्होंने
प्रश्न खड़ा किया कि काम करने के लिए बाई कौन
लाएगा।
मैंने कहा- मेरे पास तो समय नहीं
है.. आप बाजू वाली
आंटी से बोल दीजिए..
वह इन्तजाम कर देंगी।
फिर मैं अपने काम से दो दिन के लिए जबलपुर
चला गया।
दिसम्बर का महीना था.. मैं लगभग
एक बजे घर पहुँचा.. घण्टी
बजाई।
दरवाजा खुलते ही मैं एकदम से
चौंक गया, एक 18 साल की
लड़की मेरे सामने खड़ी
थी.. माँ कसम क्या फिगर था यार..
देखते ही एक बार तो लण्ड ने
भी सलामी देने के लिए
अपना सर उठाने की कोशिश
की.. लेकिन जींस पैंट
पहने होने के कारण सफल नहीं
हो पाया।
उसके चूचे इतने बड़े थे कि कुरते के
बीच से दरार साफ नजर आ
रही थी..
उसकी गांड भी
काफी कसी हुई
थी।
मैं बस उसे देखने में ही मशरूफ
था.. तभी अन्दर से
मम्मी की आवाज
आई- कौन है प्रीति?
प्रीति नाम था उसका..
उसने कहा- कोई लड़का है मम्मी
जी.. शायद कुछ बेचने आया है।
वो इससे ज्यादा कुछ कह पाती..
उससे पहले मैं घर में चला गया।
मम्मी- अरे आ गया तू.. सफर
कैसा रहा?
तब तक प्रीति भी
अन्दर आ गई थी,
मम्मी ने कहा- यह मेरा बेटा है।
तो उसने सर हिला कर ‘नमस्ते’ किय।
थोड़ी देर बैठने के बाद मैं नहाने
चला गया। अब तक मेरे मन में
प्रीति के लिए कोई गलत भावना
नहीं थी।
खाना खाने के बाद मैं अपने कमरे में चला आया..
थोड़ी देर आराम करने के बाद मैंने
अपना लैपटॉप चला लिया और कुछ काम करने
लगा.. काम खत्म करने के बाद मैंने ब्लू-फिल्म
चला ली।
मेरे कमरे में मेरे बिना पूछे कोई अन्दर
नहीं आता.. इसलिए मैं निश्चिंत
होकर अपने कपड़े उतार कर केवल कच्छे में
ही पलंग पर लेटा हुआ था.. थका
होने के कारण कब मुझे नींद आ
गई.. पता ही नहीं
चला।
ब्लू-फिल्म देखते हुए मेरा लण्ड
भी खड़ा हो गया था।
थोड़ी देर बाद मेरी
नींद खुली.. तो मैं दंग
रह गया।
प्रीति बिलकुल मेरे बाजू में
खड़ी थी और बड़े गौर
से ब्लू-फिल्म देख रही
थी।
मैं एकदम से हड़बड़ा कर उठा और
जल्दी से तौलिया खींच
कर अपने आप को ढंका.. लेकिन तब तक देर
हो चुकी थी।
मैंने लगभग चिल्लाते हुए प्रीति को
कमरे से बाहर भगा दिया, वो डर कर बाहर
भाग गई।
तभी मम्मी
की आवाज आई- क्या हुआ..?
अब डरने की बारी
मेरी थी..
कहीं प्रीति
मम्मी को कुछ बता ना दे, मैंने
कहा- कुछ नहीं
मम्मी.. बस ऐसे ही
छिपकली गिर गई थी
ऊपर..
इस वक्त तो बात खत्म हो गई।
अब शाम को खाना खाते समय मेरी
पूरी तरह से फटी
हुई थी.. कहीं
प्रीति ने मम्मी से कुछ
कह दिया तो क्या होगा। लेकिन उसने
मम्मी से कुछ नहीं
कहा, थोड़ी देर बाद वो अपने घर
चली गई.. तब जाकर
मेरी जान में आई।
अगले दिन मैं नहाकर अपने कमरे में बैठा था।
तब दरवाजे पर हलकी
सी आहट हुई.. मैंने जैसे
ही दरवाजे की तरफ
देखा तो मेरा दिल ‘धक’ से रह गया.. सामने
प्रीति खड़ी
थी..
एकदम कसा हुआ लाल सलवार-कुर्ता पहने
हुए.. क्या लग रही
थी यार.. ऐसा लग रहा था कि
अभी जाकर पकड़ लूँ। लेकिन कल
की बात याद आते ही
मेरी गांड फटने लगी।
फिर वही डर कि आज ये
कहीं मम्मी को बता ना
दे..
खैर.. वो अन्दर आई.. मुझे देख कर मुस्कुराई
और काम करके कमरे से बाहर
चली गई।
मैं आप लोगों को एक बात बताना तो भूल
ही गया.. प्रीति
सुबह से शाम तक हमारे घर पर
ही रहती
थी और शाम को सारा काम निपटा कर
अपने घर चली जाती
थी।
उस दिन घर में कुछ मेहमान आए थे.. तो
प्रीति को घर पर देर तक रुकना
पड़ा। जब काम खत्म हो गया.. तो
मम्मी ने मुझे प्रीति को
छोड़ कर आने को कहा।
मैंने बाइक निकाली और
प्रीति को लेकर चल दिया। खराब
सड़क होने के कारण मुझे बार-बार ब्रेक लगाना
पड़ रहा था.. जिसके कारण उसके मोटे-मोटे
चूचे मेरी पीठ से टकरा
रहे थे। मुझे बहुत अच्छा लग रहा था.. तो मैं
जानबूझ कर ब्रेक लगाने लगा।
अब मेरे अन्दर का शैतान जाग चुका था लेकिन
कुछ कर नहीं सका.. क्योंकि
उसका घर आ गया था।
उसे छोड़ कर मैं अपने घर वापस आ गया।
अगले दिन मम्मी ने कहा- मेरा
टिकट करा देना.. कुछ दिन भाई के पास
भी रह कर आती
हूँ।
मैंने शाम की बस से इन्दौर का
रिजर्वेशन करा दिया, पूरा दिन मम्मी
और प्रीति रसोई में लगे
रहीं, फिर मुझे आवाज लगाई और
कहा- सुबह का नाश्ता और शाम का खाना
प्रीति बना दिया करेगी।
तो मैंने कहा- यह पूरा दिन यहाँ क्या
करेगी.. मैं तो दिन भर काम से
बाहर ही रहूँगा.. बस सुबह-
शाम आ जाया करे..
मम्मी ने कहा- ठीक
है..
फिर शाम को मैं मम्मी को बस में
बिठा आया.. घर आ कर खाना खाकर सो गया।
अगले दिन इतवार था.. कहीं जाना
नहीं था.. इसलिए नहा कर अपना
लैपटॉप चला लिया और फिल्म देखने लगा..
ज्यादातर मेरे पास हालीवुड फिल्में
ही हैं।
इतने में प्रीति भी आ
गई.. साफ-सफाई करने के बाद नाश्ता बनाने
लगी, फिर नाश्ता लेकर मेरे कमरे में
आई.. लेकिन अचानक रुक गई।
मैंने पूछा- क्या हुआ?
तो उसने कहा- आप पिक्चर देख रहे हैं ना?
‘तो क्या हुआ?’
‘कुछ नहीं.. उस दिन आपने डांट
दिया था ना.. इसलिए..’
मैंने कहा- कोई बात नहीं.. आ
जाओ अन्दर.
उस दिन उसने काले रंग का सलवार और कुर्ता
पहन रखा था.. बिल्कुल चुस्त.. एक-एक
अंग अपने पूरे आकार में नुमाया हो रहा था..
एकदम कयामत लग रही
थी।
मैंने पूछा- तुमने खा लिया?
तो उसने ‘ना’ में सिर हिला दिया।
मैंने कहा- ठीक है.. अपना नाश्ता
भी यहीं ले आ..
फिल्म देखते हुए खा लेंगे।
उसने मुझे देखा जैसे कुछ पूछना चाह
रही हो.. लेकिन बिना कुछ पूछे
ही नाश्ता लेने चली
गई।
मैं पलंग पर बैठा था.. मैंने लैपटॉप सामने
की टेबल पर रख दिया और एक
मूवी चला दी।
प्रीति आई और पास में
रखी कुर्सी पर बैठ
गई.. तभी मूवी में एक
सीन आया जिसमें एक लड़का
लड़की का चुम्बन लेने
की कोशिश कर रहा था।
मैं उठा और मैंने उस सीन को आगे
बढ़ा दिया.. तो उसने कहा- चलने दो ना.. अच्छा
लग रहा है।
मैंने कहा- ऐसे सीन देखना
अच्छी बात नहीं..
तो उसने कहा- उस दिन आप भी
तो गंदी वाली पिक्चर
देख रहे थे।
अब मैं थोड़ा सामान्य हो गया था, मैंने पूछा-
अगर गंदी थी.. तो तुम
क्यों देख रही थीं?
उसने कहा- पता नहीं.. पर
उसको देख कर कुछ अजीब सा..
लेकिन अच्छा लग रहा था.. लेकिन क्या ऐसा
सच में होता है?
मैंने कहा- रहने दे.. मैं अच्छे से जानता हूँ..
तुम लोगों को सब पता होता है।
उसने कहा- नहीं.. सच में मुझे
इस बारे में कुछ नहीं पता.. हाँ..
एक बार मेरे दीदी-
जीजा घर आए थे.. तब मैंने उन्हें
रात में कुछ करते देखा था..
दीदी
अजीब सी आवाजें
निकाल रही थीं और
साथ में रो भी रही
थीं.. मुझे लगा जीजा..
दीदी को मार रहे हैं
लेकिन दीदी जब कमरे
से निकलीं तो मुस्कुरा
रही थीं। मुझे तो कुछ
समझ में नहीं आ रहा था कि
पिटाई के बाद भी कोई कैसे हंस
सकता है?
उसकी बातें सुन कर मेरे अन्दर का
जानवर फिर से जाग गया। मैंने कहा- धत्त..
उसे पिटाई थोड़े ही कहते हैं..
‘तो फिर क्या कहते हैं..?’ उसने उत्सुकता से
पूछा।
तो मैंने कहा- एक शर्त पर बताऊँगा.. अगर
तुम वादा करो कि हमारी बातों के बारे
में किसी को नहीं
बताओगी।
उसने कहा- ठीक है।
तो मैंने कहा उसे चुदाई का खेल कहते हैं..
उसमें बहुत मजा आता है।
‘अगर मजा आता है.. तो फिर
दीदी रो क्यों
रही थीं?’ उसने थोड़ा
अकड़ते हुए पूछा।
मैंने कहा- खेल की शुरूआत में
थोड़ा दर्द होता है.. फिर मजा आने लगता है।
‘आपने कभी खेला है.. ये
खेल..?’
मैंने कहा- नहीं खेला..
‘क्यों नहीं खेला..?’ उसने पूछा।
तो मैंने कहा- इस खेल को सिर्फ लड़का-
लड़की या आदमी-
औरत ही खेल सकते हैं और
मेरी कोई लड़की दोस्त
ही नहीं है।
तो उसने जो कहा.. उसे सुन कर लगा आज
कुंवारी चूत मारने का मौका मिल गया
है।
उसने कहा- मुझे भी खेल खेलना
पसंद है.. क्या आप मेरे साथ ये खेल खेलोगे..
क्योंकि जब से वो पिक्चर देखी है
न.. मेरे बदन में अजीब
सी हलचल हो रही
है।
मैंने कहा- सच बताना.. इस खेल के बारे में
तुम्हें कुछ नहीं पता?
मैंने थोड़ा जोर देकर पूछा।
उसने कहा- थोड़ा बहुत पता है.. लेकिन
कभी कुछ किया नहीं..

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